गुरु के लिए सेवक एक पुत्र के समान
संत-महापुरुष परमात्मा के भेजे हुए संदेशवाहक भी हैं और पहरेदार भी।
ये परम-पिता परमात्मा का वह संदेश जिसे यह जीव भूल चुका है, उसे स्मरण करवाने और पहरेदार की भांति इस मोह-माया के बंधनों में फंसे जीव को जगाने आए हैं।
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संत-महापुरुष परमात्मा के भेजे हुए संदेशवाहक भी हैं और पहरेदार भी। ये परम-पिता परमात्मा का वह संदेश जिसे यह जीव भूल चुका है, उसे स्मरण करवाने और पहरेदार की भांति इस मोह-माया के बंधनों में फंसे जीव को जगाने आए हैं। मानव के संत-महापुरुषों की शरण में जाने पर उसका प्रभु से जोडऩे वाले 'शब्द' से परिचय करवाते हैं।
ऐसे ही एक व्यक्ति कामिल गुरु की शरण में आया और उनसे दीक्षा ली। संतों ने उसे बताया कि,''संसार में रहते हुए काम किए बगैर गुजारा नहीं है, अच्छे कर्म करो और हर कार्य करने से पहले ईश्वर को स्मरण करना मत भूलो।''
वह व्यक्ति नियमित रूप से गुरु के द्वार जाने और गुरु से लिए शब्द का जाप करते हुए गृहस्थी चलाने लगा। एक दिन उसे व्यापार संबंधी कार्य से शहर से बाहर जाने पर बस से उतर कर तीन-चार मील का रास्ता पैदल तय करना पड़ा।
रास्ता सुनसान था। चलते-चलते उसे लगा कि कोई उसके पीछे-पीछे आ रहा है। उसने पीछे मुड़कर देखा तो कोई भी नहीं था। अचानक उसकी नजर उस कच्चे रास्ते पर पड़ी जिस पर वह चल रहा था। उसके पैरों के निशान के साथ, किसी अन्य के पैरों के निशान भी नजर आए तो वह घबरा कर अपने गुरु को स्मरण करने लगा।
डर कर वह तेज-तेज चलने लगा पर उसके अलावा जो दो अन्य पैरों के निशान नजर आ रहे थे, वे दिखने बंद नहीं हुए। उस व्यक्ति ने गंतव्य पर पहुंच कर अपना कार्य किया और साथ ही यह विनती भी की कि कृपया मुझे बस पर चढ़ा कर आने की कृपा करें। दुकानदार ने अपने नौकर को ऐसा करने को बोल दिया। उसने जाकर गुरु जी को सारी बात बताई तो वह बोले, ''अब तू मेरा हो गया है। तू जहां भी जाएगा मैं तेरे साथ रहूंगा। अपने पैरों के पीछे तू जो किसी अन्य के पैरों के निशान समझ रहा है, किसी और के नहीं, मेरे ही पैरों के निशान थे।''
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व्यापार में हानि-लाभ तो बने ही हुए हैं। एक बार उसने किसी बड़े व्यापार में पैसा लगाया जिसमें उसे बड़ा नुक्सान हुआ। सिर पर बड़ी देनदारी हो गई। उसने अपने भाई-बंधुओं से मदद मांगी पर सबने असमर्थता जताई।
वह इसी उधेड़-बुन में चला जा रहा था। रास्ता कच्चा था। उसने देखा आज पीछे सिर्फ दो पैरों के निशान ही नजर आ रहे थे। वह आदमी रोने लगा और सीधा गुरु महाराज के पास पहुंच कर रोते-रोते बोला, ''गुरुदेव! मुझ पर बुरा समय क्या आया, मेरे सगे-संबंधियों ने मेरा साथ ही छोड़ दिया पर आप तो मेरे गुरुदेव हैं, आपने मेरा साथ क्यों छोड़ दिया?''
गुरुदेव ने मुस्कराते हुए कहा, ''गुरु के लिए सेवक एक पुत्र के समान है। कभी पिता अपने पुत्र को किसी दुख-तकलीफ में छोड़ता है क्या! मां जब अपने बच्चे को साथ लेकर चलती है तो उसे अपनी उंगली पकड़ा कर चलती है और यदि रास्ता खराब या कीचड़ से भरा हो तो मां बच्चे को गोद में उठा लेती है। जब मैंने तुम्हें अपना बच्चा मानकर गोद में उठाया हुआ है तो फिर तुम्हारे पैरों के निशान कैसे नजर आएंगे? वे पैरों के निशान मेरे थे। कल सुबह शहर जाकर अमुक व्यापारी से मिल लेना, तुम्हारा काम हो जाएगा।''
गुरु के आज्ञाकारी शिष्य के हर काम में भगवान साथ देता है।