पटना। 10-12 वर्ष के बच्चे। सात-आठ वर्ष की उम्र वाले भी हैं। नशे के आदी हो चुके हैं। इन्हें इसकी लत लगाई भी जाती है। नशे के रूप में पंचर साटने वाले केमिकल का प्रयोग करते हैं। आम बोलचाल में इसे सुलेशन कहते हैं। इसकी आसानी से उपलब्धता है और सस्ता भी। बचपन इसकी चपेट में आ रहा है। नशे की शुरुआत यहां से होती है और फिर धीरे-धीरे ब्राउन शुगर और दूसरे नशीले पदार्थों तक पहुंच जाते हैं। एक दिन पहले गुरुवार को पटना जंक्शन के पास चार ऐसे बच्चों को प्रशासन ने अपने संरक्षण में लिया। इससे पहले भी बच्चे मुक्त कराए गए हैं। नशे के इस खेल के पीछे पूरा नेटवर्क है। इनसे चोरी-छिनतई जैसे अपराध भी कराए जाते हैं। बदले में नशा मिल जाता है।

महावीर मंदिर के आसपास नशे में धुत बच्चे मिल जाएंगे

इसे रोकने की बड़ी चुनौती है, अन्यथा यही बच्चे आगे चलकर अपराध की दुनिया में कदम रखेंगे। इसका प्रशिक्षण अभी से मिल रहा है। पटना जंक्शन और महावीर मंदिर के आसपास नशे में धुत बच्चे मिल जाएंगे। इनमें नाबालिग लड़कियां भी होती हैं।

पिछले वर्ष दैनिक जागरण ने इस संबंध में रिपोर्ट भी प्रकाशित की थी, जिस पर राज्यपाल राजेंद्र विश्वनाथ आर्लेकर ने संज्ञान लिया था। उनकी पहल पर जिला प्रशासन ने कार्रवाई की तो कई बच्चों को मुक्त कराया गया। कुछ समय के लिए तो ठीक-ठाक रहा, पर हाल के दिनों में ऐसे बच्चे फिर देखे जा रहे हैं।

केवल यहीं नहीं, नेहरू पथ, राजवंशी नगर, पटेल नगर, बोरिंग रोड, कदमकुआं, राजेंद्र नगर समेत कई अन्य क्षेत्रों में इस तरह के बच्चे सुलेशन सूंघते दिख जाएंगे। इससे समझा जा सकता है कि नशे का कैसा खेल चल रहा है। ई-रिक्शा चलाने वाले किशोरवय भी इसकी चपेट में हैं। एक तो नाबालिग के हाथ में ई-रिक्शा, उस पर नशा।

क्या कहते हैं सेवानिवृत्त शिक्षक?

सेवानिवृत्त शिक्षक तरुण सिन्हा कहते हैं कि जब तक ऐसी सामग्री बेचने वालों पर सख्त कार्रवाई नहीं होगी, बच्चों को उसकी चपेट में आने से बचाना संभव नहीं है। ऐसा नहीं है कि केवल झुग्गियों में रहने वाले बच्चे ही इसकी चपेट में आ रहे हैं, कई अच्छे घरों के बच्चे भी इसका शिकार हैं। पटेल नगर में रहकर घरों में दाई का काम करने वाली एक महिला के दोनों बेटों की उम्र 12 और 15 साल है। दोनों बच्चे दिनभर सुलेशन सूंघते रहते हैं।

महिला ने बताया कि शुरू में तो लगा कि ऐसे ही पालिथिन सूंघ रहे हैं, लेकिन बाद में पता चला कि दोनों सुलेशन सूंघते हैं। अब तो वे घर में चोरी करने लगे हैं। क्या करें, समझ नहीं आता। पिछले दिनों एजी कालोनी मोड़ के पास साइकिल चुराकर भागते एक किशोर को लोगों ने पकड़ा। वह नशे में धुत था। पिटाई का भी असर नहीं हो रहा था। पूछने पर उसने बताया कि सुलेशन खरीदने के लिए वह साइकिल, लोहे की जाली आदि चुराता है। ऐसी कहानी एक-दो नहीं, बल्कि दर्जनों बच्चों की है।

जब भी ऐसे बच्चों को रेस्क्यू किया जाता है, उन्हें पुनर्वास गृह में रखा जाता है। अभिभावकों को सौंपा जाता है तो फिर से वे इस दलदल में फंस जाते हैं। अब सघन अभियान चलाया जाएगा। ऐसे बच्चों को रेस्क्यू करने के साथ ही उन्हें इस तरह के पदार्थ बेचने वालों पर भी कार्रवाई की जाएगी। -उदय कुमार झा, सहायक निदेशक, बाल संरक्षण इकाई, पटना