“उत्तराखंड में फिर फटा पहाड़: भूस्खलन की बड़ी वजह इंडियन प्लेट्स की हलचल और इंसानी दखल”

देहरादून : उत्तराखंड में मानसून के दस्तक के बाद से ही लगातार बारिश का सिलसिला जारी है. जिसके चलते भूस्खलन की घटनाएं भी बढ़ती जा रही हैं. मौजूदा समय में भारी बारिश होने के चलते प्रदेश के तमाम जगहों पर आपदा जैसी स्थिति उत्पन्न हो गई है. जो शासन-प्रशासन के लिए एक बड़ी चुनौती बनी हुई है. इसी बीच भू-वैज्ञानिक सर्वेक्षण विभाग ने प्रदेश के चार जिलों में भूस्खलन को लेकर अलर्ट जारी किया है. साथ ही इन जिलों में विशेष सावधानियां बरतने की बात कही गई है.
मानसून सीजन में भारी भूस्खलन: हर साल मानसून सीजन के दौरान प्रदेश के पर्वतीय क्षेत्रों में भूस्खलन की घटनाएं काफी अधिक बढ़ जाती हैं. क्योंकि भूस्खलन होने की वजह से ना सिर्फ सड़क मार्ग बाधित होते हैं या फिर क्षतिग्रस्त होते हैं, बल्कि इंफ्रास्ट्रक्चर को नुकसान और ह्यूमन लॉस भी काफी अधिक होता है. यही वजह है कि आपदा प्रबंधन विभाग की ओर से भूस्खलन संभावित क्षेत्रों में मशीनें पहले ही तैनात की गई हैं, ताकि भूस्खलन के बाद तत्काल मार्गों को आवागमन के लिए खोला जा सके. हालांकि, प्रदेश के पर्वतीय क्षेत्रों में भूस्खलन का होना कोई नई बात नहीं है बल्कि हर साल मानसून सीजन के दौरान भूस्खलन की घटनाएं काफी अधिक बढ़ जाती हैं.
तमाम जिलों में बारिश से भूस्खलन की आशंका: उत्तराखंड में 10 जुलाई तक भारी बारिश की संभावना जताते हुए मौसम विभाग ने ऑरेंज और येलो अलर्ट जारी किया है. इसी बीच भारतीय भू वैज्ञानिक सर्वेक्षण विभाग ने 7 और 8 जुलाई को प्रदेश के चार जिलों टिहरी, उत्तरकाशी, रुद्रप्रयाग और चमोली में भूस्खलन की आशंका जताते हुए पूर्वानुमान जारी किया है. भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण विभाग की ओर से 6 जुलाई को भूस्खलन को लेकर जारी पूर्वानुमान के अनुसार, चमोली जिले के चमोली सब डिवीजन, रुद्रप्रयाग जिले के रुद्रप्रयाग व ऊखीमठ सब डिवीजन, टिहरी जिले के घनसाली, नरेंद्रनगर एवं धनोल्टी सब डिवीजन और उत्तरकाशी जिले के डुण्डा एवं चिन्यालीसौड़ सब डिवीजनों में 8 जुलाई को भूस्खलन की आशंका जताई थी.
भूस्खलन के लिए तमाम वजह जिम्मेदार: उत्तराखंड राज्य के पर्वतीय क्षेत्र में कुछ स्थान ही भूस्खलन के लिहाज से संवेदनशील नहीं हैं, बल्कि प्रदेश के सभी पर्वतीय क्षेत्रों में भूस्खलन की आशंका बनी हुई है. वर्तमान समय में तमाम ऐसे भूस्खलन क्षेत्र चिह्नित हैं, जहां आए दिन भूस्खलन होता रहता है. वैज्ञानिकों के अनुसार, किसी भी क्षेत्र में भूस्खलन के लिए कोई एक वजह जिम्मेदार नहीं है, बल्कि भूस्खलन के लिए तमाम वजह जिम्मेदार होती हैं. जिसमें, क्लाइमेट फैक्टर, एंथ्रोपोजेनिक एक्टिविटी, एक्सेसिव रेनफॉल, नेचुरल एक्टिविटी और एनवायरमेंटल डिग्रेडेशन जैसे फैक्टर्स शामिल है. इन्हीं तमाम फैक्टर की वजह से प्रदेश के पर्वतीय क्षेत्रों में भूस्खलन की आशंका बनी हुई है.
प्रदेश में भूस्खलन की घटनाएं: राज्य आपातकालीन परिचालन केंद्र से मिली जानकारी के अनुसार, साल 1988 से साल 2024 के बीच प्रदेश में करीब 15,000 से अधिक भूस्खलन की घटनाएं हुई है. जिसके चलते काफी अधिक जानमाल का नुकसान भी हुआ है. साल 2018 में 496 भूस्खलन की घटनाएं हुई थी. इसके साथ ही, साल 2019 में 291 भूस्खलन, साल 2020 में 973 भूस्खलन, साल 2021 में 354 भूस्खलन, साल 2022 में 245 भूस्खलन, साल 2023 में करीब 1323 भूस्खलन की घटनाएं हुई थी. इसी तरह साल 2024 में करीब 1813 भूस्खलन की घटनाएं हुई थी. वैज्ञानिक भी इस बात को मान रहे हैं कि भूस्खलन पर तत्काल लगाम लगाना मुश्किल है, लेकिन वैज्ञानिक तरीके से अध्ययन कर इनका ट्रीटमेंट किया जा सकता है.
मानसून सीजन के दौरान ही अधिकांश भूस्खलन होते हैं. इसी को देखते हुए भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण विभाग (GSI) ने अर्ली वार्निंग सिस्टम को स्टैबलिश किया है. ऐसे में जब मौसम विभाग भारी बारिश का अलर्ट जारी करता है तो जीआईएस भी भूस्खलन को लेकर अलर्ट जारी कर देता है. लेकिन ये समझने की जरूरत है कि भूस्खलन होने के कुछ वजहों की शुरुआत पहले ही हो चुकी होती है, जिसका असर अब देखने को मिलता है. ऐसे में किसी भी भूस्खलन के वजह को जानने के लिए उससे संबंधित सभी वजहों को देखना पड़ेगा. ऐसा भी कई बार देखा गया है कि जब पहाड़ को सड़क बनाने के लिए काटा जाता है तो वो स्लोप अनसटेबल हो जाता है. ऐसे में रैन फॉल के अलावा एंथ्रोपोजेनिक एक्टिविटी (मानवजनित गतिविधियां) भी एक बड़ा फैक्टर है.
डॉ. एस सी वैदेस्वरन, वैज्ञानिक, डब्ल्यूआईएचजी
पहाड़ों पर भूस्खलन की ये भी वजह: वैज्ञानिक डॉ. एस सी वैदेस्वरन ने बताया कि अगर किसी जगह पर भूस्खलन ज्यादा होता है तो उसके पीछे की एक वजह ये भी है कि इंडियन प्लेट्स लगातार मूव कर रही हैं. क्योंकि जहां एक और इंडियन प्लेट्स मूव कर रहे हैं तो ऐसे में रॉक्स में मौजूद फॉल्ट्स भी एक्टिव रहते हैं, जो भूस्खलन के रूप में नीचे आ जाते हैं. हालांकि मानसून एक बड़ा अहम रोल अदा करता है. वर्तमान समय में जलवायु परिवर्तन भी भूस्खलन के लिए अहम रोल अदा करती है. ऐसे में भूस्खलन मिटिगेशन के लिए तमाम तरीके हैं जिसके जरिए भूस्खलन को रोका जा सकता है.
सीएम धामी ने कही ये बात: वहीं, मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा कि आपदाओं को आने से रोकना किसी के बस में नहीं है, लेकिन आपदाओं के असर को काम किया जा सकता है. आपदा उत्तराखंड के लिए एक बड़ी चुनौती हैं, जिसमें भूस्खलन, बादल फटना और अत्यधिक जल भराव शामिल है. जिसका हर साल अलग अलग प्रकार से सामना करना पड़ता है, जिसको देखते हुए मॉक ड्रिल भी की गई है. साथ ही तमाम समीक्षा बैठकें भी की गई हैं, ताकि आपदाओं के असर को कम से कम किया जा सके.
चारधाम यात्रा रूट पर एक्टिव भूस्खलन जोन: चारधाम यात्रा रूट पर भूस्खलन जोन सिरदर्द बनते जा रहे हैं. वहीं ऋषिकेश से बदरीनाथ यात्रा रूट पर कुल 54 लैंडस्लाइड जोन हैं. जिसमें से ऋषिकेश से श्रीनगर के बीच 17 लैंडस्लाइड जोन चिन्हित किए गए हैं. रुद्रप्रयाग से जोशीमठ के बीच 32 लैंडस्लाइड जोन चिन्हित किया गया है. जोशीमठ से बदरीनाथ के बीच 5 लैंडस्लाइड जोन चिन्हित किए गए हैं. गौरीकुंड से केदारनाथ मार्ग पर 4-5 संभावित भूस्खलन जोन हैं, जहां पहले भी कई बार भूस्खलन की घटना हो चुकी हैं.ऊखीमठ क्षेत्र में दो भूस्खलन संभावित क्षेत्र हैं और सोनप्रयाग से गौरीकुंड के बीच करीब तीन भूस्खलन संभावित क्षेत्र हैं.
प्रदेश में भूस्खलन जोन ने बढ़ाई टेंशन: वहीं प्रदेश में भी कई भूस्खलन जोन हैं, जिन्हें चिन्हित किया गया है. जिसमें नैनीताल जिले में 120 भूस्खलन जोन चिन्हित हैं, जिसमें 90 क्रॉनिक जोन भी शामिल हैं. चंपावत जिले में टनकपुर-पिथौरागढ़ राष्ट्रीय राजमार्ग पर 15 संवेदनशील भूस्खलन जोन हैं. गढ़वाल मंडल में पौड़ी जिले में भूस्खलन के लिहाज से 119 जोन चिन्हित किए गए हैं. वहीं बागेश्वर जिले में सुमगढ़, कुंवारी, मल्लादेश, सेरी, बड़ेत समेत 18 क्षेत्र भूस्खलन के लिहाज से काफी संवेदनशील हैं.
मसूरी में भी भूस्खलन जोन सक्रिय: टिहरी जिले के ऋषिकेश से कीर्ति नगर के बीच हाईवे पर 15 भूस्खलन जोन चिन्हित हैं. उत्तरकाशी जिले में 16 सक्रिय भूस्खलन जोन अतिसंवेदनशील चिन्हित किए गए हैं. पिथौरागढ़ जिले के पिथौरागढ़-तवाघाट रूट पर करीब 17 भूस्खलन क्षेत्र चिन्हित हैं. देहरादून- मसूरी मार्ग पर गलोगी के पास बीते कुछ सालों से एक नया भूस्खलन जोन सक्रिय हुआ है.
चमोली जिले में 13 भूस्खलन जोन: अल्मोड़ा जिले में तीन चिन्हित भूस्खलन जोन हैं, जिसमे रानीखेत-रामनगर मोटर मार्ग पर टोटाम, अल्मोड़ा-धौलछीना मोटर मार्ग पर कसाड़ बैंड और अल्मोड़ा-पिथौरागढ़ राष्ट्रीय राजमार्ग पर मकड़ाऊ शामिल है. चमोली जिले में 13 भूस्खलन जोन, जिसमें लामबगड़ के पास खचड़ा नाला, गोविंदघाट के पास कटैया पुल, हनुमान चट्टी के पास रडांग बैंड, भनेर पाणी, चाड़ा तोक, क्षेत्रपाल, पागल नाला, सोलंग, गुलाब कोटी, छिनका, चमोली चाड़ा, बाजपुर और कर्णप्रयाग क्षेत्र है.